आज प्रत्येक मनुष्य स्वयं से ही परेशान है , व्यक्ति के भीतर छुपी काम , क्रोध , लोभ और ईर्ष्या - द्वेष की भावनाएं न उसे चैन से जीने देती है और न ही समाज को । फिर फिल्मों के अपराधिक और अश्लील द्रश्य , गन्दा साहित्य इन छुपी हुई भावनाओं को और भड़का देता है ।
अश्लीलता और अपराध के चित्रण को कभी भी स्वस्थ मनोरंजन नहीं कहा जा सकता ।
जब तक लोगों का चरित्र श्रेष्ठ नहीं होगा तब तक शान्ति नहीं होगी और श्रेष्ठ चरित्र के निर्माण का प्रयास जीवन के आरम्भ से ही करना होगा । इस सच को समझना होगा कि हमारे पास अपार धन सम्पदा है लेकिन यदि स्वयं का जीवन और परिवार सुरक्षित नहीं है तो वह सब धन व्यर्थ
है l हमारा प्रयास यह हो कि हमारे पास धन हो , अच्छा स्वास्थ्य हो और सुरक्षा भी हो ताकि उसका उपयोग किया जा सके । । धन और स्वास्थ्य तो प्रयास से संभव है लेकिन सुरक्षा ?
सुरक्षा तो तभी संभव है जब समाज के अन्य लोग भी खुशहाल होंगे , उनकी मानसिकता कुंठित नहीं होगी ।
अश्लीलता और अपराध के चित्रण को कभी भी स्वस्थ मनोरंजन नहीं कहा जा सकता ।
जब तक लोगों का चरित्र श्रेष्ठ नहीं होगा तब तक शान्ति नहीं होगी और श्रेष्ठ चरित्र के निर्माण का प्रयास जीवन के आरम्भ से ही करना होगा । इस सच को समझना होगा कि हमारे पास अपार धन सम्पदा है लेकिन यदि स्वयं का जीवन और परिवार सुरक्षित नहीं है तो वह सब धन व्यर्थ
है l हमारा प्रयास यह हो कि हमारे पास धन हो , अच्छा स्वास्थ्य हो और सुरक्षा भी हो ताकि उसका उपयोग किया जा सके । । धन और स्वास्थ्य तो प्रयास से संभव है लेकिन सुरक्षा ?
सुरक्षा तो तभी संभव है जब समाज के अन्य लोग भी खुशहाल होंगे , उनकी मानसिकता कुंठित नहीं होगी ।
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