भौतिक सुख - भोग में लिप्त होने के कारण आज मनुष्य ईश्वरीय शक्ति को , उसके न्याय को समझ नहीं पा रहा है । प्राचीन समय में शरणागत की रक्षा करना शक्तिशाली अपना धर्म समझते थे , किसी के कमजोर , असहाय होने पर दुष्ट आततायी से उसकी रक्षा करते थे ।
लेकिन आज के समय में लोगों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है , लोग कमजोर , निर्धन , मजबूर को शरण नहीं देते , उसकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं और जो अमीर हैं , शक्तिसंपन्न हैं , जिसने गरीबों का शोषण करके , धोखे और चालबाजी से धन एकत्रित किया है , उसको अपने यहाँ शरण देंगे , उसको अपने घर , अपने क्षेत्र में रहने देंगे । उसके कहने पर उसकी सम्पति को भी अपने यहाँ सुरक्षित रख लेंगे l यही है अशान्ति का सबसे बड़ा कारण है l
बिच्छू का स्वभाव डंक मारना है तो वह संसार के किसी भी कोने में रहे डंक मारेगा । । इसी प्रकार अपराधी प्रवृति का व्यक्ति जहाँ भी रहेगा वहीँ अशान्ति फैलायेगा ।
गलत राह पर चलने वालों और , दुष्ट प्रवृति के लोगों के साथ मित्रता , उनको अपने घर में आश्रय देना उनके पाप कर्मों के हिस्सेदार बनना है l उनके पाप की छाया से आसपास का समूचा क्षेत्र अशांत होने लगता है ।
अनेक लोग चाहे वे संसार के किसी भी कोने में हों विभिन्न कारणों से लोगों की गलत ढंग से , दूसरों का शोषण करके कमाई गई सम्पति को अपने पास सुरक्षित रखते हैं । दिखने में वह सम्पति है पर वास्तव में वह गरीबों और दुःखियों की आहों और उनकी हाय की गठरी है । उसी से निकलने वाली तरंगे वहां के वातावरण को अशांत करती है । ऐसे क्षेत्रों में सब कुछ होते हुए भी चैन नहीं होता ।
महाभारत की एक कथा है ------ भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था ' शिशुपाल ' । उनको किसी ने बताया था कि भगवान श्रीकृष्ण के हाथों उसकी मृत्यु होगी । अत: वे रोती हुईं कृष्णजी के पास गईं और शिशुपाल के जीवन की भीख मांगने लगीं । भगवान श्रीकृष्ण दयालु थे । उन्होंने कहा --- ठीक है , मैं इसके सौ अपराध क्षमा कर दूंगा ।
एक उत्सव में संसार भर के राजा - महाराजा उपस्थित थे । उसमे श्री कृष्ण को प्रथम - पूज्य बनाने के लिए प्रस्ताव किया गया । इस पर शिशुपाल नाराज हो गया और श्री कृष्ण को गाली देने लगा । भागवान मुस्कराते रहे और गिनते रहे --- एक , दो , तीन , चार , पांच --------- उसे समझाते रहे लेकिन वह चुप नहीं हुआ ---- नब्बे -------- निन्यानवे , सौ ! भगवान ने उसके सौ अपराध क्षमा कर दिए , सौ पूरे होते ही उनकी अंगुली में सुदर्शन चक्र था ----- अब भागा शिशुपाल ------ हर राजा के पास जाता , मुझे शरण दो , मेरी रक्षा करो , सब बड़े - बड़े राजा - महाराजा सुदर्शन चक्र को प्रणाम कर अपनी आँखें नीची कर लेते । वे जानते थे कि शिशुपाल अपराधी है , उसे शरण देने
का मतलब ईश्वर के कोप का भाजन बनना है । किसी ने उसे शरण नहीं दी । उसे अपने अपराध की सजा मिल गई ।
आज मनुष्य अपने आपको सर्व शक्तिमान समझता है । हम उस अज्ञात शक्ति से डरें, ईश्वर के न्याय को समझें तभी संसार में शान्ति संभव है l
लेकिन आज के समय में लोगों पर दुर्बुद्धि का प्रकोप है , लोग कमजोर , निर्धन , मजबूर को शरण नहीं देते , उसकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं और जो अमीर हैं , शक्तिसंपन्न हैं , जिसने गरीबों का शोषण करके , धोखे और चालबाजी से धन एकत्रित किया है , उसको अपने यहाँ शरण देंगे , उसको अपने घर , अपने क्षेत्र में रहने देंगे । उसके कहने पर उसकी सम्पति को भी अपने यहाँ सुरक्षित रख लेंगे l यही है अशान्ति का सबसे बड़ा कारण है l
बिच्छू का स्वभाव डंक मारना है तो वह संसार के किसी भी कोने में रहे डंक मारेगा । । इसी प्रकार अपराधी प्रवृति का व्यक्ति जहाँ भी रहेगा वहीँ अशान्ति फैलायेगा ।
गलत राह पर चलने वालों और , दुष्ट प्रवृति के लोगों के साथ मित्रता , उनको अपने घर में आश्रय देना उनके पाप कर्मों के हिस्सेदार बनना है l उनके पाप की छाया से आसपास का समूचा क्षेत्र अशांत होने लगता है ।
अनेक लोग चाहे वे संसार के किसी भी कोने में हों विभिन्न कारणों से लोगों की गलत ढंग से , दूसरों का शोषण करके कमाई गई सम्पति को अपने पास सुरक्षित रखते हैं । दिखने में वह सम्पति है पर वास्तव में वह गरीबों और दुःखियों की आहों और उनकी हाय की गठरी है । उसी से निकलने वाली तरंगे वहां के वातावरण को अशांत करती है । ऐसे क्षेत्रों में सब कुछ होते हुए भी चैन नहीं होता ।
महाभारत की एक कथा है ------ भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था ' शिशुपाल ' । उनको किसी ने बताया था कि भगवान श्रीकृष्ण के हाथों उसकी मृत्यु होगी । अत: वे रोती हुईं कृष्णजी के पास गईं और शिशुपाल के जीवन की भीख मांगने लगीं । भगवान श्रीकृष्ण दयालु थे । उन्होंने कहा --- ठीक है , मैं इसके सौ अपराध क्षमा कर दूंगा ।
एक उत्सव में संसार भर के राजा - महाराजा उपस्थित थे । उसमे श्री कृष्ण को प्रथम - पूज्य बनाने के लिए प्रस्ताव किया गया । इस पर शिशुपाल नाराज हो गया और श्री कृष्ण को गाली देने लगा । भागवान मुस्कराते रहे और गिनते रहे --- एक , दो , तीन , चार , पांच --------- उसे समझाते रहे लेकिन वह चुप नहीं हुआ ---- नब्बे -------- निन्यानवे , सौ ! भगवान ने उसके सौ अपराध क्षमा कर दिए , सौ पूरे होते ही उनकी अंगुली में सुदर्शन चक्र था ----- अब भागा शिशुपाल ------ हर राजा के पास जाता , मुझे शरण दो , मेरी रक्षा करो , सब बड़े - बड़े राजा - महाराजा सुदर्शन चक्र को प्रणाम कर अपनी आँखें नीची कर लेते । वे जानते थे कि शिशुपाल अपराधी है , उसे शरण देने
का मतलब ईश्वर के कोप का भाजन बनना है । किसी ने उसे शरण नहीं दी । उसे अपने अपराध की सजा मिल गई ।
आज मनुष्य अपने आपको सर्व शक्तिमान समझता है । हम उस अज्ञात शक्ति से डरें, ईश्वर के न्याय को समझें तभी संसार में शान्ति संभव है l
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