भौतिक चकाचौंध में मनुष्य ने स्वयं अपने मन को अशान्त कर लिया है । शान्ति कहीं बाहर से खरीदी नहीं जाती यह तो अपने मन की एक स्थिति है जो अध्यात्म की राह पर चलने से प्राप्त होती है ।
हम सब सांसारिक प्राणी है , योगी नहीं हैं । हमें संसार से भागना भी नहीं है । इस संसार में रहते हुए इस ढंग से जीवन जीना है कि हमारा जीवन सार्थक हो जाये । जो लोग धन के पीछे बहुत भागते हैं वे हमेशा अशान्त रहते हैं क्योंकि भोग की भी एक सीमा है । धन की तीन ही गति हैं --- दान , भोग या नाश । सुख शान्ति से जीने के लिए जरुरी है कि अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ कुछ धन पुण्य के कार्यों पर खर्च किया जाये , गरीबों एवं जरुरतमंदो की मदद कर अपने लिए धन का नहीं दुआओं का संचय करें तभी जीवन में शान्ति संभव है ।
लोगों के दिल - दिमाग पर धन इस कदर हावी है कि ईश्वर के लिए पूजा - पाठ भी एक व्यवसाय बन गया है । जब नजर धन पर , चढ़ावे पर हो तो ईश्वर मे ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता, इसलिए कर्मकांड का कोई पुण्य नहीं मिलता , मन को शान्ति नहीं मिलती । आज संसार को सबसे अधिक जरुरत सद्बुद्धि की है ।
हम सब सांसारिक प्राणी है , योगी नहीं हैं । हमें संसार से भागना भी नहीं है । इस संसार में रहते हुए इस ढंग से जीवन जीना है कि हमारा जीवन सार्थक हो जाये । जो लोग धन के पीछे बहुत भागते हैं वे हमेशा अशान्त रहते हैं क्योंकि भोग की भी एक सीमा है । धन की तीन ही गति हैं --- दान , भोग या नाश । सुख शान्ति से जीने के लिए जरुरी है कि अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ कुछ धन पुण्य के कार्यों पर खर्च किया जाये , गरीबों एवं जरुरतमंदो की मदद कर अपने लिए धन का नहीं दुआओं का संचय करें तभी जीवन में शान्ति संभव है ।
लोगों के दिल - दिमाग पर धन इस कदर हावी है कि ईश्वर के लिए पूजा - पाठ भी एक व्यवसाय बन गया है । जब नजर धन पर , चढ़ावे पर हो तो ईश्वर मे ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता, इसलिए कर्मकांड का कोई पुण्य नहीं मिलता , मन को शान्ति नहीं मिलती । आज संसार को सबसे अधिक जरुरत सद्बुद्धि की है ।
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