आज समाज में स्थिति विपरीत है । कोई भी श्रेष्ठ परम्परा यदि समाज में शुरू करनी है तो उस परम्परा को जब बड़ी उम्र के व्यक्ति , बुद्धिजीवी और धन - संपन्न व्यक्ति अपनायेंगे तो अन्य सभी वर्गों के लोग उनका अनुसरण करने लगेंगे ।
बच्चे अपने माता - पिता का प्रतिरूप होते हैं । यदि पिता का चरित्र श्रेष्ठ नहीं है तो सन्तान के श्रेष्ठ चरित्र की उम्मीद नहीं की जा सकती । कई लोग अपने बच्चों की चरित्र हीनता पर उन्हें कठोर दंड देते हैं । ऐसा करने से पहले उन्हें अपने जीवन का अवलोकन करना चाहिए --- बबूल के पेड़ में आम नहीं लगता । भावी पीढ़ी को श्रेष्ठ बनाने के लिए स्वयं अच्छा बनना पढ़ेगा ।
इसी तरह यदि हम चाहते हैं कि समाज में सुख - शान्ति हो , लोग अपना कर्तव्य पालन ईमानदारी से करें , चोरी , बेईमानी आदि अपराध कम हों तो इसके लिए भी उच्च पदों के लोगों को , बुद्धिजीवियों को और धन - संपन्न लोगों को आदर्श प्रस्तुत करना होगा ।
स्वयं सन्मार्ग पर चलकर ही हम आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन कर सकते हैं । इस आदर्श के अभाव के कारण ही परिवार टूट रहें हैं , समाज में अशांति है , किसी को किसी पर विश्वास नहीं है , छोटे - छोटे बच्चों का जीवन भी सुरक्षित नहीं है । इंसानियत को जीवित रख कर ही सतत विकास सम्भव है ।
बच्चे अपने माता - पिता का प्रतिरूप होते हैं । यदि पिता का चरित्र श्रेष्ठ नहीं है तो सन्तान के श्रेष्ठ चरित्र की उम्मीद नहीं की जा सकती । कई लोग अपने बच्चों की चरित्र हीनता पर उन्हें कठोर दंड देते हैं । ऐसा करने से पहले उन्हें अपने जीवन का अवलोकन करना चाहिए --- बबूल के पेड़ में आम नहीं लगता । भावी पीढ़ी को श्रेष्ठ बनाने के लिए स्वयं अच्छा बनना पढ़ेगा ।
इसी तरह यदि हम चाहते हैं कि समाज में सुख - शान्ति हो , लोग अपना कर्तव्य पालन ईमानदारी से करें , चोरी , बेईमानी आदि अपराध कम हों तो इसके लिए भी उच्च पदों के लोगों को , बुद्धिजीवियों को और धन - संपन्न लोगों को आदर्श प्रस्तुत करना होगा ।
स्वयं सन्मार्ग पर चलकर ही हम आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन कर सकते हैं । इस आदर्श के अभाव के कारण ही परिवार टूट रहें हैं , समाज में अशांति है , किसी को किसी पर विश्वास नहीं है , छोटे - छोटे बच्चों का जीवन भी सुरक्षित नहीं है । इंसानियत को जीवित रख कर ही सतत विकास सम्भव है ।
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