केवल भौतिक समृद्धि से शान्ति सम्भव होती तो संसार के अमीर और सब सुविधाओं से संपन्न देशों में शान्ति होती । हर जगह तनाव , दंगे , हमले और प्राकृतिक प्रकोप हैं ।
भौतिक समृद्धि के पीछे बहुत अधिक भागने के कारण मन का वह कोना खाली रह गया जिसमे करुणा, संवेदना , सहयोग , प्रेम आदि भावनाएं होती हैं जो मन को , आत्मा को सुकून देती हैं ।
इसका एक और बहुत बड़ा कारण है कि मनुष्य का खान - पान । लोग मांसाहार के पक्ष में अनेक तर्क देते हैं , लेकिन अपने जीवन में लम्बे समय तक मांसाहार करने वाला व्यक्ति स्वाभाव से क्रूर , निर्दयी और क्रोधी हो जाता है , उसे किसी को मारने , किसी के द्वारा हत्या कराने, शारीरिक, मानसिक कष्ट देने में देर नहीं लगती l यह सब उसका स्वाभाव बन जाता है । ।
लेकिन शाकाहारी अधिकांशत: अहिंसक प्रवृति के होते हैं । वे किसी इनसान तो क्या जानवर को भी नहीं मारते और न उन्हें कोई कष्ट देते हैं । आजकल ऐसे लोग बहुत कम हैं । संवेदनहीन समाज में शान्ति की आशा कैसे की जा सकती है l
भौतिकता के साथ जब व्यक्ति स्वयं में आध्यात्मिक तत्वों का समावेश करेगा तभी वह स्वयं शान्ति से रह सकेगा और अपने संपर्क में आने वालों को शान्ति प्रदान करेगा । आध्यात्मिक होने का अर्थ -- कर्मकांड करना नहीं है । स्वयं के दोषों को दूर कर सद्गुणों की वृद्धि करना ही अध्यात्म है । प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक होने का प्रयास करे तो धीरे - धीरे संसार से क्रूरता , निर्दयता और संवेदनहीनता की घटनाएँ होनी कम हो जाएँगी l
भौतिक समृद्धि के पीछे बहुत अधिक भागने के कारण मन का वह कोना खाली रह गया जिसमे करुणा, संवेदना , सहयोग , प्रेम आदि भावनाएं होती हैं जो मन को , आत्मा को सुकून देती हैं ।
इसका एक और बहुत बड़ा कारण है कि मनुष्य का खान - पान । लोग मांसाहार के पक्ष में अनेक तर्क देते हैं , लेकिन अपने जीवन में लम्बे समय तक मांसाहार करने वाला व्यक्ति स्वाभाव से क्रूर , निर्दयी और क्रोधी हो जाता है , उसे किसी को मारने , किसी के द्वारा हत्या कराने, शारीरिक, मानसिक कष्ट देने में देर नहीं लगती l यह सब उसका स्वाभाव बन जाता है । ।
लेकिन शाकाहारी अधिकांशत: अहिंसक प्रवृति के होते हैं । वे किसी इनसान तो क्या जानवर को भी नहीं मारते और न उन्हें कोई कष्ट देते हैं । आजकल ऐसे लोग बहुत कम हैं । संवेदनहीन समाज में शान्ति की आशा कैसे की जा सकती है l
भौतिकता के साथ जब व्यक्ति स्वयं में आध्यात्मिक तत्वों का समावेश करेगा तभी वह स्वयं शान्ति से रह सकेगा और अपने संपर्क में आने वालों को शान्ति प्रदान करेगा । आध्यात्मिक होने का अर्थ -- कर्मकांड करना नहीं है । स्वयं के दोषों को दूर कर सद्गुणों की वृद्धि करना ही अध्यात्म है । प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक होने का प्रयास करे तो धीरे - धीरे संसार से क्रूरता , निर्दयता और संवेदनहीनता की घटनाएँ होनी कम हो जाएँगी l
No comments:
Post a Comment