इस संसार में अनेक तरह के लोग हैं । अनेक लोग हैं जो विभिन्न तरीके की अपराधिक गतिविधियों में संलग्न हैं । कुछ लोग ऐसे हैं जो स्वयं अपराध नहीं करते लेकिन विभिन्न तरीकों से अपराधियों की मदद करते हैं । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अत्याचारी की मदद नहीं करते लेकिन उसका विरोध भी नहीं करते , चुपचाप मूक दर्शक बने रहते हैं । एक वर्ग ऐसा भी होता है जो अपने पूजा - पाठ में लगा रहता है , फिर दुनिया में चाहे जो हो ।
इन सब तरीकों से अत्याचारी को तो बल मिलता है , प्रबल विरोध न होने से वह कमजोर को और सताता है ।
इसका एक दूसरा पक्ष भी है । ऐसे सब लोग जो स्वयं पाप न करें लेकिन पापी की मदद करें , उसे अनदेखा करें उन सब पर प्रकृति का दंडविधान लागू होता है ।
महाभारत में एक कथा है ------ चक्रव्यूह में सात बड़े योद्धाओं ने मिलकर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का वध कर दिया । चक्रव्यूह के प्रथम दरवाजे पर जयद्रथ था जिसके कारण चक्रव्यूह में चारों पांडव प्रवेश नहीं के सके थे । अर्जुन जो चक्रव्यूह में प्रवेश करना जानता था उसे दुर्योधन ने चालाकी से अन्य राजाओं के साथ युद्ध के लिए चुनौती देकर उस क्षेत्र से दूर कर दिया था । जब अर्जुन को अभिमन्यु वध का दुःखद समाचार मिला तो उसने प्रतिज्ञा की कि अगले दिन युद्ध में सूर्यास्त होने से पहले जयद्रथ का वध करेगा अन्यथा स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देगा ।
दूसरे दिन भयंकर युद्ध हुआ । दुर्योधन ने जयद्रथ को छिपा दिया जिससे उसका अर्जुन से सामना न हो पाये । उस दिन युद्ध में हजारों सैनिक मारे गये लेकिन जयद्रथ का कहीं पता न चला और सूर्यास्त हो गया ।
प्रतिज्ञा के मुताबिक चिता तैयार हो गई और स्वयं को अग्नि में समर्पित करने से पूर्व अर्जुन सबसे विदा लेने लगा । दुर्योधन अहंकारी और अन्यायी था वह जयद्रथ को बुला लाया कि अर्जुन का अंत निकट है तुम भी यह द्रश्य देख लो ।
पांडव सत्य और न्याय पर थे और अर्जुन तो भगवान श्रीकृष्ण की शरण में था , उसके जीवन की डोर भगवान् के हाथ में थी । कृष्ण जी ने अपनी माया समेट ली और अस्त होते सूर्य को उदित दिखा दिया । अर्जुन से कहा --- पार्थ ! गांडीव उठाओ ! देखो सामने जयद्रथ है , अभी सूर्यास्त नहीं हुआ । जिसको दिन भर ढूँढा वह सामने खड़ा था । फिर क्या था , एक ही बाण में जयद्रथ का सिर धड़ से अलग हो गया ।
कृष्णजी ने अर्जुन को समझा दिया कि इस तरह लक्ष्य कर के बाण मारना कि जयद्रथ का सिर उसके पिता जो उस समय तपस्या कर रहे थे --- उनकी गोद में गिरे । जयद्रथ के पिता को वरदान था कि जिसके हाथ से उनके पुत्र का सिर जमीन पर गिरेगा उसके सिर के भी सौ टुकड़े हो जायेंगे । जैसे ही जयद्रध का सिर उनकी गोद में गिरा वे घबड़ाकर उठे तो उनके हाथ से वह सिर भी जमीन पर गिर गया जिससे उनके सिर के भी सौ टुकड़े हो गए ।
हमारे महाकाव्य में वर्णित ये कथाएं हमें जीवन जीने की शिक्षा देती हैं कि स्वयं पाप न करे और पापी से , अन्यायी से दूर रहे अन्यथा जयद्रथ की तरह कितना भी छुपो , उसके पिता की तरह तपस्या करो , ईश्वर के प्रकोप से बच नहीं सकते ।
इन सब तरीकों से अत्याचारी को तो बल मिलता है , प्रबल विरोध न होने से वह कमजोर को और सताता है ।
इसका एक दूसरा पक्ष भी है । ऐसे सब लोग जो स्वयं पाप न करें लेकिन पापी की मदद करें , उसे अनदेखा करें उन सब पर प्रकृति का दंडविधान लागू होता है ।
महाभारत में एक कथा है ------ चक्रव्यूह में सात बड़े योद्धाओं ने मिलकर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का वध कर दिया । चक्रव्यूह के प्रथम दरवाजे पर जयद्रथ था जिसके कारण चक्रव्यूह में चारों पांडव प्रवेश नहीं के सके थे । अर्जुन जो चक्रव्यूह में प्रवेश करना जानता था उसे दुर्योधन ने चालाकी से अन्य राजाओं के साथ युद्ध के लिए चुनौती देकर उस क्षेत्र से दूर कर दिया था । जब अर्जुन को अभिमन्यु वध का दुःखद समाचार मिला तो उसने प्रतिज्ञा की कि अगले दिन युद्ध में सूर्यास्त होने से पहले जयद्रथ का वध करेगा अन्यथा स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देगा ।
दूसरे दिन भयंकर युद्ध हुआ । दुर्योधन ने जयद्रथ को छिपा दिया जिससे उसका अर्जुन से सामना न हो पाये । उस दिन युद्ध में हजारों सैनिक मारे गये लेकिन जयद्रथ का कहीं पता न चला और सूर्यास्त हो गया ।
प्रतिज्ञा के मुताबिक चिता तैयार हो गई और स्वयं को अग्नि में समर्पित करने से पूर्व अर्जुन सबसे विदा लेने लगा । दुर्योधन अहंकारी और अन्यायी था वह जयद्रथ को बुला लाया कि अर्जुन का अंत निकट है तुम भी यह द्रश्य देख लो ।
पांडव सत्य और न्याय पर थे और अर्जुन तो भगवान श्रीकृष्ण की शरण में था , उसके जीवन की डोर भगवान् के हाथ में थी । कृष्ण जी ने अपनी माया समेट ली और अस्त होते सूर्य को उदित दिखा दिया । अर्जुन से कहा --- पार्थ ! गांडीव उठाओ ! देखो सामने जयद्रथ है , अभी सूर्यास्त नहीं हुआ । जिसको दिन भर ढूँढा वह सामने खड़ा था । फिर क्या था , एक ही बाण में जयद्रथ का सिर धड़ से अलग हो गया ।
कृष्णजी ने अर्जुन को समझा दिया कि इस तरह लक्ष्य कर के बाण मारना कि जयद्रथ का सिर उसके पिता जो उस समय तपस्या कर रहे थे --- उनकी गोद में गिरे । जयद्रथ के पिता को वरदान था कि जिसके हाथ से उनके पुत्र का सिर जमीन पर गिरेगा उसके सिर के भी सौ टुकड़े हो जायेंगे । जैसे ही जयद्रध का सिर उनकी गोद में गिरा वे घबड़ाकर उठे तो उनके हाथ से वह सिर भी जमीन पर गिर गया जिससे उनके सिर के भी सौ टुकड़े हो गए ।
हमारे महाकाव्य में वर्णित ये कथाएं हमें जीवन जीने की शिक्षा देती हैं कि स्वयं पाप न करे और पापी से , अन्यायी से दूर रहे अन्यथा जयद्रथ की तरह कितना भी छुपो , उसके पिता की तरह तपस्या करो , ईश्वर के प्रकोप से बच नहीं सकते ।
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